हाल ही में मिले एक पाकिस्तानी पाठक के स्नेहिल पत्र ने मुझे भारत को विरासत में मिली गंगा - जमनी संस्कृति की याद दिला दी। जब हमारे मुस्लिम मित्र रमज़ान में रोज़े रख रहे थे, तो हिन्दु परिवार नवरात्रियों के व्रत - उपासना में व्यस्त थे और अब ईद और दीपावली भी हम लगभग साथ - साथ मनाने जा रहे हैं। मुझे हर बार बहुत खुशी होती है जब हिन्दीनेस्ट की विश्वव्यापी लोकप्रियता के चलते देश - विदेश से अनेक पत्र मिलते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम का भाव मन में चिरस्थायी हो जाता है। पिछले कई दिनों से मैं अपने पाठकों से एक विचार, एक बात बांटना चाहती थी। हम आज आधुनिक से आधुनिकतम होने की बात करते हैं। ग्लोबलाइज़ेशन की बात करते हैं। हम यही सोचते रहे हैं इतने बरसों की हमारी सभ्यता बहुत आगे निकल आई है। मीडिया द्वारा देश को एक सूत्र में बांध दिए जाने की बात करते हैं। जब पचास घण्टे तक सनी नामका एक बच्चा एक गहरे गड्ढे में फंसा था तो मीडिया ने ढेरों विज्ञापन बटोरते हुए उस बच्चे की स्थिति को लेकर उस बच्चे की स्थिति और आर्मी के जवानों की मेहनत का मिनट दर मिनट आंखों देखा हाल बता कर बहुत लोकिप्रियता हासिल कर ली थी। पिछले दिनों सनसनी ने तांत्रिकों की, रिश्वतखोरों, ढोंगी बाबाओं के डेरों की पोल खोल कर अपनी साख बना ली थी। लेकिन किन सभ्यताओं की, किस आधुनिकता की बात करते हैं? हम तो और पीछे लौट रहे हैं। किस मीडिया की बात कर रहे हैं, उन टेलीविज़न चैनल की जो ` मनोहर कहानिया', `सत्य - कथाएं' जैसी पत्रिकाओं की जगह ले रहे हैं। जो एक ओर सत्यकथाएं, प्रेम अपराध कथाएं, भ्रष्टाचार, ठगी, लूट और बड़े लोगों के घरों के सुराखों को दिखाते हैं, दूसरी तरफ पुर्नजन्म, भूत प्रेत, तांत्रिकों, भुतहा हवेलियों, नाग देवता के किस्से को दिखा कर अपनी टी आर पी बढ़ा रहे हैं। वही `सनसनी' कार्यक्रम का संचालक श्रीवर्धन ञिवेदी जो ढोंगी बाबाओं की पोल खोलता नज़र आता था, अब सनसनी कार्यक्रम के बीच में, `कौन है' जैसे भुतहा सीरियल की उदघोषणा भी करता है। हमारी आस्थाएं विडंबनात्मक तरीके से मीडिया द्वारा विकृत की जा रही हैं, और हम खामोशी से उनका विकृत होना देख रहे हैं। टेलीविजन होम शॉपिंग के बहाने हमारे धर्म - गुरु ग्रह के अनुरूप रत्न,स्र्द्राक्ष, ताबीज़, महामृत्युंजय जाप की सीडी - कैसेट खूब बेचे जा रहे हैं वह भी सीधे सीधे नहीं भावनात्मक तौर पर मार्केटिंग के हथकण्डों द्वारा ब्लैकमेल करके। इस मामले में फिर ईसाई और मुसलमान भी कैसे पीछे रह सकते हैं, वहां उन दर्शकों को लक्ष्य बना कर `खुदा का दरवाज़ा', ताबीज़ और चमत्कारी क्रॉस बेचे जा रहे हैं। बेजन दारू वाला और जैकी श्राफ राशि और ग्रह के अनुरूप रत्न बिकवा रहे हैं। आरतियों, भजनों, तरह तरह के जापों, वशीकरण मंत्रों और महामृत्युजंय जाप, कालसर्प योग के उपायों की सीडी कैसेट से बाज़ार भरे पड़े हैं। धर्म की दुकानें सजी हैं, आस्था को लोगों के मन के निजी कोनों से निकाल कर बोली लगाई जा रही है। पाप में आकण्ठ डूबे लोग पाप - पुण्य के हिसाब किताब से निजात पाने के लिए धर्म की दुकानों से बचाव का सामान खरीद रहे हैं। रिश्वत लो, शराब पियो, वेश्यागमन करो, अपने नैतिक कर्तव्यों से मुंह चुराओ, देश और समाज से परे स्वकेन्द्रित और स्वार्थी रहो और बस एक रत्न पहन कर, एक कैसेट चला कर या फेंगशुई या वास्तुशास्त्र के एक उपाय या उपकरण से सारे पापों से तुरन्त( इंस्टेन्ट!) मुक्त! धर्म भी अब बाज़ारवाद की गोद में फल - फूल रहा है। वही धर्म जो प्रेम की तरह हमारी नितान्त निजी भावना है। आस्था जो हमारे अन्तरतम की अनुभूति है, उसे इस उपभोक्तावाद ने अपहृत कर लिया है। ज़ी टीवी, स्टार, सोनी जैसे चैनल इस आस्था का सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं। धर्म जिसे प्रचार - प्र्रसार और प्रवचनों के लिए मीडिया का सहारा नहीं लेना चाहिए या फिर मीडिया जिसे धर्म से एक निश्चित दूरी रखनी चाहिए थी वहीं वे एक दूसरे के विकृत होते जा रहे स्वरूप का धड़ल्ले से विज्ञापन करते नज़र आ रहे हैं। टी वी के जिस टेली शॉपिंग बाज़ार में जहां स्तन उन्नत करने और कटि क्षीण करने की दवाएं या उपकरण बिकते हैं, जिनके साथ गोरे होने की या बाल साफ करने की क्रीम मुफ्त मिला करती है, उसी पर बिकता है एक मुखी, पंचमुखी स्र्द्राक्ष जिसके साथ महामृत्युंजय जाप की कैसेट फ्री मिलती है। टेली शॉपिंग बाज़ार में हर चीज़ बिकाऊ है, जी हाँ आजकल धर्म भी। हमारे धर्म हमारे दिलों से उठ कर पूरी तड़क - भड़क के साथ जा सजे हैं बाज़ारों में। हमारे देवता बिकते हैं, टेली शॉपिंग बाज़ार में, एक के साथ एक फ्री की तर्ज पर। वशीकरण मंत्र, ताबीज़ पुराने नहीं लेटेस्ट ट्रेण्ड हैं। करवाचौथ का त्यौहार जो कभी गांव - मोहल्लों की स्त्रियां समूह में, शादी वाली चूनर ओढ़ कर, कथा कह कर, थालियां फिरा कर सादगी और पवित्रता के साथ मनाया करती थीं वहीं बाज़ारवाद की बदौलत यह एक दिखावे का त्यौहार बन गया है। मीडिया ने इसे भी टारगेट बना लिया है। स्त्रियां इस सादगी भरे त्यौहार पर भी डिज़ायनर साड़ियां, कोमलिका स्टायल की डिज़ायर लुक के पीछे बाज़ार भागती हैं और कथा की जगह सीडी चलती है, और सम्पूर्ण दिखावे और पाखण्ड के साथ यह त्यौहार मनाया जाने लगा है। मीडिया और मार्केट, जानते हैं उनके नाज़ुक शिकार कौन है! बच्चे और औरतें और उनकी भावनाएं। मीडिया अपनी भूमिका निभाने में स्वयं बाज़ार का गुलाम है, वह अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभाए, टी आर पी का सवाल है। लेकिन चैनलों की बाढ़, उस पर सच्ची कहानियों के नाम पर मीडिया का लोगों के बेडरूम में झांकना, दांपत्य में घुसपैठ करना, धार्मिक अंधविश्वासों, भूत प्रेतों की पाठशालाओं को कवर करना, इन सबसे से एक आम और औसत बुद्धि का दर्शक कब तक प्रभावित हुए बिना रह सकेगा? हमें इस सबसे से बचने के लिए किसका मुंह ताकना होगा? भारतीय सेन्सर बोर्ड का या सूचना प्रसारण मंत्रालय का? या स्वयं ही अपनी आंखें, चेतना और बुद्धि को खुला रख इन सबसे से प्रभावित होने से हरसंभव बचाना होगा। खैर... सद्भावना और सौहार्द से भरे भारत के दो महत्वपूर्ण त्यौहार दीपावली और ईद करीब हैं, अपनी गंगा - जमनी परंपराओं के साथ इन्हें मनाएं। ऐसे में आज मुझे हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला की कुछ पंक्तियां बेतहाशा याद आ रही हैं - मुसलमान औ' हिन्दु हैं दो एक, मगर, उनका प्याला एक, मगर, उनका मदिरालय एक, मगर, उनकी हाला दोनों रहते एक न जब तक मस्ज़िद - मंदिर में जाते बैर बढ़ाते मस्ज़िद - मंदिर, मेल कराती मधुशाला! ००००००००००००० एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाजी, जलती दीपों की माला; दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला!
शुभकामनाओं के साथ
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14 comments:
बहुत सुन्दर .. हिन्दी चिठ्ठाकारी की दुनिया को बस अभी अभी खंगालना शुरु किया है, समसामयिक विषयॉ पर कम ही ऐसे अच्छे और मुखर विचार अभी तक दिखे.
शुभकामनाये .. लिखती रहिये .
chalo, ek nai shuruat.
likhti to accha ho. main kabhi soch bhi nahi sakta tha ki tum rajniti,samajik aadi sumsamyik vishayon par bhi likhogi.
badhayi.
best wishes
sanjeev
bahut bahut badhaie,
samsamyik smasya pr likhne ke liye.
awaiting ur next contemporary problems.
neelam shanker
मनीशा जी बहुत सुन्दर ब्लोग है. उदयपुर के लिये येह गर्व की बात ह्नै कि ऐसे ब्लोगर उदयपुर मे है. बहुत बाहुत बधाई
hindu muslim sanskriti ka jo sadbhav badhaya h wo kabile tarif h
achchha likha hai apane. kripaya word verification hata deve to suvidha janak hoga.
बहुत खूब.
Best and good,or kia kahu....
blog dekha. prayas sundar hai. aapne apani pahachan kayam kee hai. khub sambhavanayen hai...... hamari subhkamanayen.
dularam saharan, churu-331001,
rajasthan.
Sumsamyik vishayon par ankhen kholne wala blog likha hai.
bahut bahut badhai.
lekh bahut accha v man ko chune wala hai.yahi aaj ki sachhai hai.Pls keep it up.
Sanjay Bhasin
मनीषा जी, साधुवाद...आपने तो अपनी भावनाऎं व्यक्त कर मिडिया की सच्चाई सामने ला दी.किन्तु कई जन ऐसे भी हैं जो यह सब देख-सुन कर छटपटा रहे हैं.कुछ कर नहीं पाते.अपनी भड़ास निकाल नहीं पाते, कुंठित हो रहे हैं.कुछ इस बारे में भी लिखिऎ.
manisha ji , aapke vichar padhkar bahut achchha laga. Aapke blog me LADKI kavita padh kar man hua ki aapke sath kuchh share kiya jaye. Please mere blog par aakar meri kavitayen padhkar apne comment kijiye. I shall be thankful to u. my blog is - aparna-hindilekhan.blogspot.com
bht badhiya hai. aap bhawishya me aur accha likhe.
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